अब गाँवों में भी बहेगी ज्ञान की गंगा
चलो यूँ करें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये ..... के जरिये शायर ने भोले चेहरों पर मुस्कान लाने का बड़ा काम बताया है। देश के 200 बेहद छोटे गाँवों में मासूम चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए ऐसी ही कोशिश चल रही है। इन गाँवों में लाईब्रेरी के माध्यम से स्कूली बच्चों में पढने की आदत डालने की कोशिश की जा रही है। रूरल रिलेशंस नामक संस्था द्वारा संचालित इस कोशिश का मकसद सिर्फ ग्रामीण स्कूली बच्चो में रीडिंग हैबिट को बढ़ावा देना ही नहीं, बल्कि शहर और गाँवों को नजदीक लाना भी है। शहरी डोनर्स की मदद से दूरदराज़ के इलाकों में चल रही लायिब्रेरियां फिलहाल 50 हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों को पाठ्य पुस्तकों से अलग किताबें मुहैया करा रही है।इन लाईब्रेरियों को देश के शहरी डोनर्स के अलावा अमेरिका , न्यूज़ीलैंड ,इजराईल और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में मददगार मिल रहे हैं। अक्षरों के इस आन्दोलन से जुड़े रूरल रिलेशंस के प्रदीप लोखंडे के अनुसार , हमारी योजना आने वाले 20 दिनों में प्रतिदिन के हिसाब से 10 गाँवों में रोज़ ज्ञान की लाईब्रेरी शुरू करने की है।
फिलहाल इस अभियान के अंतर्गत महाराष्ट्र के ज़्यादातर गाँवों को कवर करने वाले लोखंडे की योजना जल्दी ही एमपी और आन्ध्र प्रदेश में भी ऐसी ही योजना चलाने की है। फिलहाल यह अभियान गाँव के स्कूलों के जरिये चलाया जा रहा है। बेटे -बेटी में अंतर करने वाले ग्रामीण परिवेश में चल रही इन लाईब्रेरियों की कमान पूरी तरह से लड़कियों के हाँथ में है। लोखंडे बताते हैं की पिछले दिनों ज्ञान की लाईब्रेरी ने इन स्कूली बच्चो के लिए एक ग्लोबल स्टोरी राईटिंग कम्पटीशन आयोजित किया था , जिसे अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अफ़्रीकी बच्ची की अधूरी कहानी को पूरा करने की प्रतियोगिता रखी , जिससे 132 स्कूलों से 3900 से ज्यादा कहानिया आई। इत्तेफाक से जो सर्वश्रेष्ठ पाँच कहानिया चुनी गयी ,वे लड़कियों ने लिखी थी।

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